नई दिल्ली, 26 मार्च 2025:

मल्लयुद्ध (Mallyuddha), जिसे भारत की प्राचीन युद्धकला और पारंपरिक खेल के रूप में जाना जाता है, एक बार फिर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है। मल्लयुद्ध न केवल एक खेल है, बल्कि भारतीय संस्कृति और युद्धकला की गौरवशाली विरासत का प्रतीक भी है।

प्राचीन पौराणिक संदर्भ:
मल्लयुद्ध का उल्लेख वेदों, पुराणों और भारतीय महाकाव्यों में मिलता है। महाभारत में भीम और दुर्योधन के बीच हुए गदा युद्ध को मल्लयुद्ध का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। वहीं, रामायण में हनुमान और बाली के बीच हुए युद्ध को भी इसी श्रेणी में रखा गया है।
भगवान कृष्ण और चाणूर के बीच हुए मल्लयुद्ध का वर्णन भागवत पुराण में मिलता है, जहां भगवान कृष्ण ने मथुरा के राजा कंस के प्रमुख पहलवान चाणूर को हराकर धर्म की स्थापना की थी।

इतिहास और विकास:
मल्लयुद्ध की परंपरा भारत में हजारों वर्षों से चली आ रही है। मौर्य और गुप्त काल में इसे राजाओं और योद्धाओं की शारीरिक एवं मानसिक शक्ति का परीक्षण माना जाता था। इसके बाद, मुगल और ब्रिटिश काल में मल्लयुद्ध की परंपरा अखाड़ों में जीवित रही। अखाड़ा संस्कृति ने इस खेल को संरक्षित रखते हुए गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से इसे आगे बढ़ाया।

मल्लयुद्ध के चार प्रमुख प्रकार:
मल्लयुद्ध को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जिनमें प्रमुख रूप से –

  1. भुज-युद्ध: जिसमें केवल हाथों का प्रयोग कर प्रतिद्वंद्वी को परास्त किया जाता है।

  2. प्रहार-युद्ध: जिसमें प्रतिद्वंद्वी को जमीन पर गिराने का प्रयास किया जाता है।

  3. गदा-युद्ध: जिसमें गदा और पारंपरिक हथियारों का प्रयोग किया जाता है।

  4. नरसिंह-युद्ध: जिसमें शरीर की ताकत और मानसिक दृढ़ता का परीक्षण होता है।

अखाड़ा संस्कृति और प्रशिक्षण:
भारत के विभिन्न हिस्सों में आज भी मल्लयुद्ध का अभ्यास अखाड़ों में किया जाता है। अखाड़ों में गुरु-शिष्य परंपरा के तहत यह कला सिखाई जाती है। इसमें दंड-बैठक, कसरत, तेल मालिश और कुश्ती के विभिन्न दांव-पेच सिखाए जाते हैं। अखाड़ों में मल्लयुद्ध को आत्मसंयम, अनुशासन और शारीरिक शक्ति का माध्यम माना जाता है।

मल्लयुद्ध का पुनर्जागरण:
"इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ मल्लयुद्ध (IFM)" के नेतृत्व में इस पारंपरिक खेल को वैश्विक मंच पर पुनः स्थापित करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। IFM का उद्देश्य मल्लयुद्ध को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाना और इसे यूनाइटेड नेशंस (UN), यूनेस्को (UNESCO), अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC), और वर्ल्ड एंटी-डोपिंग एजेंसी (WADA) जैसी संस्थाओं से मान्यता प्राप्त कराना है।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता की पहल:

  • यूनाइटेड नेशंस और यूनेस्को से मान्यता: IFM ने मल्लयुद्ध को यूनेस्को की ‘Intangible Cultural Heritage’ सूची में शामिल करने की सिफारिश की है।

  • IOC और WADA से समर्थन: मल्लयुद्ध को अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर मान्यता दिलाने के लिए IOC और WADA से सहयोग की पहल की जा रही है।

मल्लयुद्ध के संरक्षण की चुनौतियां और समाधान:
मल्लयुद्ध के संरक्षण और संवर्धन में कई चुनौतियां हैं। आधुनिक खेलों के बढ़ते प्रभाव के कारण पारंपरिक खेलों का ह्रास हो रहा है। हालांकि, IFM और अन्य संगठनों के प्रयासों से मल्लयुद्ध को पुनर्जीवित करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं।

मल्लयुद्ध की वर्तमान स्थिति और भविष्य:
आज के दौर में मल्लयुद्ध को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने के लिए भारत के अलावा अन्य देशों में भी इसे बढ़ावा दिया जा रहा है। IFM और "फेडरेशन ऑफ मल्लयुद्ध इंडिया (FMI)" के सहयोग से मल्लयुद्ध को ओलंपिक खेलों में शामिल करने की योजना बनाई जा रही है।

निष्कर्ष:
मल्लयुद्ध न केवल भारत का एक पौराणिक और परंपरागत खेल है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर और युद्धकला का अमूल्य प्रतीक भी है। आधुनिक युग में इसके पुनर्जागरण से भारतीय संस्कृति को विश्व मंच पर पुनः गौरव प्राप्त होगा। मल्लयुद्ध को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने की दिशा में चल रहे प्रयास न केवल इस खेल की गरिमा को पुनः स्थापित करेंगे, बल्कि युवाओं को अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने में भी सहायक होंगे।